अनुभूति में
चन्द्र शेखर
पान्डेय ‘शेखर’ की रचनाएँ—
अंजुमन में—
आदमी को
एक सिक्का दिया था
कभी मंजर नहीं दिखते
जब प्रिय मिलन में
मुझे इश्क का वो दिया तो दे
|
|
जब प्रिय मिलन में
जब होंठ सिल जाएँ नयन में मौन सा संवाद हो,
जब प्रिय मिलन में एक मद्धम सा मधुर उन्माद हो।
सागर से मिलने में सरित कुछ मौन हो जाती सदा,
उस मौन सी आवाज में किंचित नहीं अवसाद हो।
हो निज समर्पण की भी तृष्णा और हिय लज्जा धरे,
बाहें बहकती हों स्वयं मिथ्या तनिक प्रतिवाद हो।
श्वासों की श्वासों से मची प्रतियोगिता सी हो निरत,
सब धमनियों में रक्त का बढता हुआ उत्पाद हो।
आत्मा अनंगी हो रही हो छोड़ कर निर्लिप्तता,
बस प्रेम हो चहुँ ओर फैला प्रेम का अनुनाद हो।
१३ अक्तूबर २०१४
|