अनुभूति में
चन्द्र शेखर
पान्डेय ‘शेखर’ की रचनाएँ—
अंजुमन में—
आदमी को
एक सिक्का दिया था
कभी मंजर नहीं दिखते
जब प्रिय मिलन में
मुझे इश्क का वो दिया तो दे
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आदमी को
आसमाँ को अगर जुल्मत की अदा देता है।
आदमी को खुदा परवाज-ए-अना देता है।
अपने हाथों को दिल पे रख के उसे चाहो तो
धडकनों में ही वो अपना भी पता देता है।
दोस्तों के बयाँ की इतनी कलमबंदी क्यों
मेरा अख़लाक़ तो दुश्मन भी बता देता है।
एक बच्चे की ही सीरत में खुदा की सूरत
हाय वो अक्स भी ज़ाहिद क्यों मिटा देता है।
वो ही चारा है दर्द-ए-दिल भी वो ही है शेखर
वो ही कातिल तेरा है वो ही शिफ़ा देता है।
१३ अक्तूबर २०१४
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