तुमने गर
अपनाया होता
तुमने गर अपनाया होता
कुछ भी और न चाहा होता
पेड़ न गर कटवाया होता
सबके सर पर साया होता
ज़ख्म हर इक भर जाता अपना
तुमने गर सहलाया होता
शीशमहल की यह तनहाई
काश! कि घर बनवाया होता
इतने जुगनू बेमानी है
सूरज एक उगाया होता
ढूँढ रहे हो तुम अपनों को
मेरा पता लगाया होता!
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