अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ब्रजकिशोर वर्मा 'शैदी' की रचनाएँ-

अंजुमन में-
चुप था
जिस पर पैनी धार नहीं है
तुमने गर अपनाया होता
मुझको यह अहसास
सोच रहे सब

 

जिस पर पैनी धार नहीं है

जिस पर पैनी धार नहीं है
वह मेरी तलवार नहीं है

जिसको मेरी नहीं ज़रूरत
वह मेरा संसार नहीं है

पड़ा जूझना हर पल मुझको
समझौता स्वीकार नहीं है

दुश्मन आखिर दुश्मन ही है
माना, वह खूँखार नहीं है

जैसे, बिन पानी के बादल
रिश्ते हैं, पर प्यार नहीं हैं

दुर्लभ हैं घर ऐसे, जिनके
आँगन में दीवार नहीं है

जीना तो लाजिम है, लेकिन
जीने का अधिकार नहीं है

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter