अनुभूति में
बल्ली सिंह चीमा की रचनाएँ-
अंजुमन
में-
अब तो फिर
धूप से सर्दियों में
रोटी माँग
रहे लोगों से
ले
मशालें चल पड़े हैं
साज़िश में
वो ख़ुद शामिल हो |
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धूप से सर्दियों में
धूप से सर्दियों में ख़फ़ा कौन है ?
उन दरख़्तों के नीचे खड़ा कौन है ?
बह रही हो जहाँ कूलरों की हवा,
पीपलों को वहाँ पूछता कौन है ?
तेरी जुल्फ़ों तले बैठकर यूँ लगा,
अब दरख़्तों तले बैठता कौन है ?
आप जैसा हँसी हमसफ़र हो अगर,
जा रहे हैं कहाँ सोचता कौन है ?
रात कैसे कटी और कहाँ पर कटी,
अजनबी शहर में पूछता कौन है ?
आप भी बावफ़ा ’बल्ली’ भी बेगुनाह,
सारे किस्से में फिर बेगुनाह कौन है ?
२४ सितंबर २०१२
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