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अनुभूति में बाबूलाल गौतम की रचनाएँ-

अंजुमन में-
जब तक मेरी बात
जब से उसके हाथ में
नहीं वो लौट कर आया
मेरी गज़लों से बच कर
सैलाब ने जो छोड़ी

 

नहीं वो लौट कर आया

नहीं वो लौट कर आया तुझे बस यह शिकायत है
मुहब्बत ना निभा पाने का ग़म भी तो मुहब्बत है

किया था जिस में उसने साथ जीने मरने का वादा
अड़ंगे में मेरे घर के दबा महफूज़ वो ख़त है

चमन का नाम है बेशक़ गुलों से और पत्तों से
मगर हर शाख़ का रोना है, काँटों की हुकूमत है

सयानों की नज़र में तुर्प का पत्ता है हमदर्दी
भरम नादान को है उसके अश्कों की भी कीमत है

तसव्वुर में जो पुख्ता है हकीकत से कहीं बढ़ कर
नहीं मौजूद उसको समझना कोरी हिमाकत है

४ मई २०१५

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