अनुभूति में
बाबूलाल गौतम की रचनाएँ-
अंजुमन
में-
जब तक मेरी बात
जब से उसके हाथ में
नहीं वो लौट कर आया
मेरी गज़लों से बच कर
सैलाब ने जो छोड़ी |
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जब तक मेरी बात
जब तक मेरी बात पड़ेगी दिल्ली के कानों में
खत्म हो चुकी होगी सारी मदिरा मयखानों में
जिनसे बचने को पहरे तजवीज़ हुये थे यारो
देखा करना वही मुंतखिब होंगे दरबानों में
शम्मा को भी जलना और जलाना नहीं गवारा
कीड़े टूट पड़े हैं जबसे मिलकर परवानों में
ज़मीं बिक गई पेड़ों जैसे साथ बिक गये हम भी
खड़े हैं अपने घर में लेकिन गिनती बेगानों में
खेत बेचकर शहर में आजा सीख लगाना पटरी
नहीं रही अब बरकत ‘होरी’ गेंहू के दानों में
४ मई २०१५
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