सर्दी की तेज़ लू में
सदी की तेज़ लू में भी हमें
जीने का ग़म होगा
तुम्हारे हाथ का पत्थर वफ़ादारी में कम होगा
समझ लेने की कोशिश में यही हर
बार तो होगा
किसी बच्चे के रोने का अकेले में वहम होगा
ये माना रोज़ मेरी ख़्वाहिशें
लेती हैं अंगड़ाई
ग़मों से अपना याराना न टूटे, ये भरम होगा
लहू में वक़्त का दामन दिखाएँगे
तुम्हें उस दिन
निशाने पर अगर ज़ख़्मी कोई मौसम तो नम होगा
खुद अपने आप से महफूज़ रखने की
तमन्ना में
शबे ग़म के अंधेरों में वफ़ाओं पर सितम होगा!
२४ अगस्त २००९ |