अनुभूति में
अनिल कुमार जैन की रचनाएँ-
अंजुमन में-
किताबें
गर्दिश में वो कोसों दूर
जख्म खाकर मुसकुराना
ज्वालामुखी तो चुप है
थक गया हूँ मैं बहुत
लड़कियाँ
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थक गया हूँ मैं
बहुत
थक गया हूँ मैं बहुत, लेकिन अभी बाक़ी सफ़र है
हाय बोझिल ज़िन्दगी की कितनी लम्बी ये डगर है
कौन पल सूरज ढलेगा, उम्र का किस को खबर है
ज़िन्दगी मुश्किल है उस पर, मर न जाएँ ये भी डर है
उड़ रहा है झूठ की आँधी में, सच टूटे परों सा
खो न जाये वो कहीं, इस बात का ही मुझ को डर है
साँस लेने के सिवा, हरकत नहीं है कोई होती
होड़ मुर्दों से लगा कर सो रहा सारा नगर है
खुश है चिड़िया घोंसला तस्वीर के पीछे बनाकर
बे ख़बर है उसके घर पर एक बिल्ली की नज़र है
आम इन्साँ के लिये जद्दोजहद संसद में थी
बाद उसके क्या हुआ, क्या आपको उस की खबर है
शोरो गुल है, उलझनें हैं, सुख हैं लाखों, और दुख हैं
बस्तियाँ ढेरों बसीं हैं, ज़हन इक ऐसा नगर है
बदजु़बानी जो हुई, उसकी मुआफ़ी चाहता हूँ
तल्ख़ होती ज़िन्दगी का, इस जुबाँ पर भी असर है
लड़ नहीं सकता ‘अनिल’ है भाग भी सकता नहीं वो
सिर्फ़ कटना है मुक़द्दर में, बहुत बेबस शज़र है
२३ जून २०१४ |