अनुभूति में
अनिल कुमार जैन की रचनाएँ-
अंजुमन में-
किताबें
गर्दिश में वो कोसों दूर
जख्म खाकर मुसकुराना
ज्वालामुखी तो चुप है
थक गया हूँ मैं बहुत
लड़कियाँ
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गर्दिश में वो
कोसों दूर
गर्दिश में वो कोसों दूर हैं क्यों, जो साथ थे मेरे बहारों में
साये की तरह छोड़ा तन्हा, अपनों ने मुझे अँधियारों में
तन बिकता है, मन बिकता है, फ़न बिकता, रूह भी बिकती है
हर चीज़ का सौदा होता है, ख़ुदग़र्जों के दरबारों में
क़द्रों की हक़ीक़त बेमानी, जीने की तमन्ना ख़ाक़ हुई
है ख़ून यहाँ हर सू सस्ता, महँगा पानी बाज़ारों में
अब होली में वो रंग कहाँ, दीवाली सूनी लगती है
मतभेद से, कुछ मँहगाई से़ फ़ीका लगता त्योहारों में
माना न हक़ीक़त, ख्वाब सही, मंज़र तो हो दिलकश आँखों को
आशा की किरन इक फूट पड़े, बेबस, बेकस, लाचारों में
जन्नत जो ज़मीने हिन्द की थी, फूलों की महक बसती थी जहाँ
अब मौत बरसती है यारो, कश्मीर के सब गलियारों में
आया ये ज़माना कैसा ‘अनिल’ अमृत से हलाहल जीत गया
अब ख़ौफ़े ख़ुदा, दिल में न रहा, डरना भी गया उजियारों में
२३ जून २०१४ |