समन्दर की लहरों सी
समन्दर की लहरों
सी है जिन्दगानी
कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी
उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी
बुढ़ापे में अब ताजपोशी मिले है
किसी काम की अब नहीं है जवानी
ये मौजें भी अब मुतमइन सी लगे हैं
नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी
नवल ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं
मगर मुझको भाती हैं चीजें पुरानी
१० फरवरी २०१४
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