मुक्तिकामी चेतना
मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना
इतिहास की।
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की।।
आप कहते हैं जिसे इस देश का
स्वर्णिम अतीत।
वह कहानी है महज़ प्रतिशोध की, संत्रास की।।
यक्ष प्रश्नों में उलझ कर रह गई
बूढ़ा सदी।
यह प्रतीक्षा की घड़ी है क्या हमारी प्यास की।।
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को
आखिर क्या दिया।
सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फास की।।
याद रखिए यों नहीं ढलते हैं
कविता में विचार।
होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की।।
५ जनवरी २००९ |