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काशी
के हम पंडे जी |
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काशी के
हम पण्डे जी
जाने किसके डण्डे जी
मीठी बातों
के पीछे
छुपे हुऐ हथकण्डे जी
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अपनी आप बघारो जी
हमको नहीं उतारो जी
आप मौलवी
काबा के तो
काशी के हम पण्डे जी
1
जिसकी भी अब खाऐंगे
वही घराना गाऐंगे
उस्तादों ने
बाँध दिये
हम को पक्के गण्डे जी
1
किसकी कुर्सी, बैठा कौन
जैसे सब हैं, हम भी मौन
बेईमानों की
मृत्यु पर
झुके हुऐ हम झण्डे जी
1
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प्रदीप कांत |
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