अनुभूति में
डॉ. सुशील शर्मा
की रचनाएँ-
दोहों में-
मैं रावण लंकाधिपति
कुंडलिया में-
मकर संक्रांति
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मकर संक्रांति (कुंडलिया)
१
पोंगल बीहू लोहड़ी, मकर राशि आदित्य।
बिखरा है हर ओर अब, मौसम का लालित्य।।
मौसम का लालित्य,सूर्य अब उत्तरगामी।
मन है उड़ी पतंग, डोर प्रभु ने है थामी।
माँ रेवा का तीर, दाल बाटी मन मंगल।
मधुर पर्व संक्रांति, लोहड़ी बीहू पोंगल।
२
पावन दिन संक्रांति का, अयन बदलते सूर्य।
मकर राशि दिनमणि गमन, बाजे हर दिशि तूर्य।
बाजे हर दिशि तूर्य, सुहाना आया मौसम।
नभ में उड़ीं पतंग, नहाते सब जन संगम।
रवि को देकर अर्घ्य, धर्ममय मन संयोजन।
करें राष्ट्र निर्माण, मनाएँ उत्सव पावन।
१ फरवरी २०२३ |