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ज़रा ठहरो |
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मिटाओ मत जरा ठहरो अभी तो
चाह बाकी है
अभी मंजिल कहाँ तय की
अभी तो राह बाकी है
अभी मैंने कहाँ
मधुमास का शृंगार देखा है
कहाँ मधुयामिनी को चन्द्र का उपहार देखा है
उमड़ते मेघ का उत्साह, बरसती
रिमझिमी बूँदें
कहाँ तपती धरा की पीर काउपचार देखा है
लुटी सी डालियों पर पल्लवों का
प्यार बाकी है
अभी तो राह
की दूरी दिशा ही जान पाए हैं
हवा का रुख किधर रहता नहीं पहचान पाए हैं
लड़ाई का रहा इतिहास काँटों से,
अंधेरे से
हुई भूलें कहाँ परिणाम को अनुमान पाए हैं
हृदय चाहे हुआ आहत मगर
विश्वास बाकी है
सुनो मेरी सुनो
यह जिंदगी कुछ और जीने दो
पड़ी है चिन्दियाँ बिखरी, वसन
अभिराम सीने दो
सदा कड़वे कसैले घूँट ही पीते रहे हैं हम
मधुर सौंदर्य का प्याला हमें भर चाह पीने दो
समय का हाथ छूटा भीड़ में
यह आह बाकी है
- गिरिजा कुलश्रेष्ठ |
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इस माह
गीतों में-
अंजुमन मे-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
दोहों में-
पुनर्पाठ में-
विगत माह
गीतों में-
अंजुमन मे-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
दोहों में-
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