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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

१३. ४. २०१५-

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हाँ विरोध

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हाँ विरोध तीखा लगता है
तेज मिर्च
जैसे सब्जी में

आँतें इँठकर जूना जैसे
उमड़-घुमड़ हो उदर बीच में
आँखें लाल लगें गिरगिट-सी
हाथी जैसे फँसा कीच में

मुँह फूला-फूला लगता है
बुरा हाल
जैसे कब्जी में

स्वेद-स्वेद काया हो जाती
थूक सूख जाता पल भर को
दिन में भी तारे दिख जाते
थके कदम कहते चल घर को

केवल हाथों में बाकी है
जान अभी
जैसे नब्जी में 

- पवन प्रताप सिंह पवन

 

इस सप्ताह

गीतों में-

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पवन प्रताप सिंह

अंजुमन में-

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मालिनी गौतम

छंदमुक्त में-

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नीरज कुमार नीर

दोहों में-

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टीकमचंद ढोडरिया

पुनर्पाठ में-

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सीतेश चंद्र श्रीवास्तव

पिछले सप्ताह
६ अप्रैल २०१५ के अंक में

गीतों में-
रमेश गौतम

अंजुमन में-शंभुनाथ तिवारी

छंदमुक्त में-
अनिल कुमार पुरोहित

कुंडलिया में-
कृष्णनंदन मौर्य

पुनर्पाठ में-
शुभम

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी