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बचपन के दिन
हँसते पल छिन
याद बहुत हैं आते।
माँ की गोदी
थपकी, लोरी
प्यारी, मीठी बातें।
बाबूजी वटवृक्ष
घना साया था
उनका।
उसके नीचे
पलते थे हम
सुखी कुटुम्ब था अपना।
याद अभी भी है उनका
अनुशासन
उनकी बातें।
संगी साथी,
दिन भर मस्ती,
खेल खिलौने मिट्टी के।
कैरम, लूडो
लुका छिपी
छत पर गुड्डी भाक्कटे।
बीच बीच में
भूख लगे तो
घर आ रोटी खाते।
तन मन चंचल
ना कोई चिन्ता
भोला भाला जीवन।
जाने कहाँ
लुप्त हो गया
जब से आया यौवन।
अब तो छत पर
काटा करते
तारे गिन गिन रातें।
- अनुराग तिवारी |