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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

१६. २. २०१५-

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बचपन के दिन

 

बचपन के दिन
हँसते पल छिन
याद बहुत हैं आते।
माँ की गोदी
थपकी, लोरी
प्यारी, मीठी बातें।

बाबूजी वटवृक्ष
घना साया था
उनका।
उसके नीचे
पलते थे हम
सुखी कुटुम्ब था अपना।
याद अभी भी है उनका
अनुशासन
उनकी बातें।

संगी साथी,
दिन भर मस्ती,
खेल खिलौने मिट्टी के।
कैरम, लूडो
लुका छिपी
छत पर गुड्डी भाक्कटे।
बीच बीच में
भूख लगे तो
घर आ रोटी खाते।

तन मन चंचल
ना कोई चिन्ता
भोला भाला जीवन।
जाने कहाँ
लुप्त हो गया
जब से आया यौवन।
अब तो छत पर
काटा करते
तारे गिन गिन रातें। 

- अनुराग तिवारी

 

इस सप्ताह

गीतों में-

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अनुराग तिवारी

अंजुमन में-

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राकेश मधुर

छंदमुक्त में-

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सविता मिश्रा

क्षणिकाओं में-

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संध्या सिंह

पुनर्पाठ में-

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सत्यवान शर्मा


 

पिछले सप्ताह
९ फरवरी ९०१५ के अंक में

गीतों में-

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डॉ. मनोहर अभय

अंजुमन में-

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किशन साध

छंदमुक्त में-

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जयप्रकाश मानस

हाइकु में-

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मंजुल भटनागर

पुनर्पाठ में-

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सर्वेश शुक्ला

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी