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जीवन के
चौराहे से |
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जीवन के
चौराहे से हाँ
हम उस ओर मुड़े
धूल भरा गलियारा छूटा
छूटी दीया बाती
अपना बूढ़ा बरगद छूटा
छूटी गाय रँभाती
छूट गये सारे जो न्यारे
खुद से भी बिछड़े
आ पहुँचे उस जगह जहाँ की
दुनिया निपट निराली
जहाँ भाव संवेदन
पर भी रहती है रखवाली
अर्थ जहाँ पुरुषार्थ चतुष्टय
धर्म जहाँ झगड़े
आँगन के मटके का जल
जो छोड़ होड़ मे भागा
जीवन भर सागर के तट पर
प्यासा रहा अभागा
छोटी सी
यह बात न समझे
हम थे बहुत बड़े
- अनिल
मिश्रा |
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