कर्ण बहादुर के दोहे
जन्म–
१२ मई वर्ष १९७८ को ग्राम सालारपुर, पोस्ट दरीबा, जिला
रायबरेली, उत्तर प्रदेश में।
शिक्षा–
एम.ए. हिंदी साहित्य मेरठ विश्व विद्यालय
प्रकाशित कृतियाँ –
फेसबुक पर सम्बन्धसेतु नाम से बिभिन्न रचनाओं का प्रस्तुतिकरण
तथा पत्र-पत्रिकाओं में कुछ रचनाएँ प्रकाशित
संप्रति –
प्राइवेट संस्थान में मैनेजर तथा सम्बन्धसेतु (मासिक पत्रिका
का लगातार ५ वर्षों तक सम्पादन )
ई मेल-
sambandhsetumn@gmail.com | |
समाजवाद
सब अपनी ही खैर में, करते सबसे बैर
पैर सभी के काटते, ना पायें जो तैर
हैरत जिनसे मानता, यह सारा संसार
हम उनमें से एक हैं, छुपी हमारी मार
काहे इतना रो रहे, तुममें सबकी जान
बात हमारी मान लो, दे देते मुस्कान
पक्षी ऐसे घाट का, ना पानी ना सूख
भूख न मुझको खा रही, ना खाता मैं भूख
सूखे –सूखे धान सब, रूखे जो हरियाय
रूखा पानी बोलता, तू मुझको पी जाय
कर्म हीनता ना कभी, देती कुछ भी बोय
कर्म शील सब पा रहे, कर्म हीन सब खोय
दीन न कोई भी यहाँ, ना कोई दुखियार
सब सुखिया ही भोगते, दुःख की रूखी मार
भूखे लोगों को नहीं, मिलता रोटी नोन
सोन उगलते हैं यहीं, रहकर पक्षी मौन
कुछ घुन्नाये से खड़े, बोलें ना रुकि पाय
कटती मछ्ली सों लगें, बचें नहीं मरि जाय
भाषा रोती ना कभी, रोये उसका भाव
यह कविता यह लेखनी, आज लगी है दाँव
१५ दिसंबर २०१४
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