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५. ५. २०१४

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डोर वतन की हाथ में जिसके

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डोर वतन की हाथ में जिसके
मना रहा रंगरेली है

सूखा सूखा
हलक हमारा
प्यास बहुत ही गहरी है
सबको है मालूम नदी की
धार कहाँ पर ठहरी है
चुप हैं फिर भी लोग
यही तो अनबुझ एक पहेली है

गौण हुई है
भूख गरीबी
कुर्सी की बेताबी है
बिन बादल बरसात हुई है
फिर मौसम चुनावी है
रोटी की चाहत में कितनी
फैली हुई हथेली है

डूब रही
ख्वाबों की कश्ती
रोज दलों के दल दल में
सुधबुध खोकर हम बैठे
मालूम नहीं किस जंगल में
रहबर कोठेबाज समझिए
संसद मूक हवेली है

-शंभु शरण मंडल

इस सप्ताह

गीतों में-

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शंभु शरण मंडल

नई हवा में-

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भावना

छंदमुक्त में-

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करुणेश किशन

कुंडलिया में-

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कल्पना रामानी

पुनर्पाठ में-

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कंचन मेहता

पिछले सप्ताह
२८ अप्रैल २०१३ के अंक में

गीतों में-

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सुरेन्द्र
शर्मा

अंजुमन में-

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सुरेन्द्र चतुर्वेदी

छंदमुक्त में-

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अनिल कुमार पुरोहित

कहमुकरी में-

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पवन प्रताप सिंह पवन

पुनर्पाठ में-

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हिना गुप्ता

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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