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२८. ४. २०१४

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पनघट छूट गया

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कितने आगे निकल गये हम,
पनघट छूट गया।
याद गाँव की बहुत सताई
मनघट टूट गया।

शहरों के जंगल में कोई
अपना नहीं मिला।
देख देखकर खुश होता वह,
अब ना कहीं मिला।
दूर हुआ अपनी माटी से
घट-घट फूट गया।

खटिया और चौपाल
खो गई, कहीं तन्हाई में।
फूट-फूटकर आँखें रोईं
सदा जुदाई में।
भरा हुआ पानी का मटका
धम्म से छूट गया।

नीम-निबौली,पीपल बरगद
सबके सब अपने।
देखे थे वो खुली आँख से
बचपन में सपने।
सोन चिरैया, मैना, तोता
पपीहा रूठ गया।

छूट गये सब पोखर झरने
मंदिर ताल तलैया।
बड़े दिनों में आती दादी
लेती खूब बलैया।
मिट्टी छूटी, चिट्ठी छूटी
सपना टूट गया।

-सुरेन्द्र शर्मा

इस सप्ताह

गीतों में-

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सुरेन्द्र शर्मा

अंजुमन में-

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सुरेन्द्र चतुर्वेदी

छंदमुक्त में-

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अनिल कुमार पुरोहित

कहमुकरी में-

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पवन प्रताप सिंह पवन

पुनर्पाठ में-

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हिना गुप्ता

पिछले सप्ताह
२१ अप्रैल २०१३ के अंक में

गीतों में-

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रामशंकर वर्मा

अंजुमन में-

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संतोष कुमार पांडेय

छंदमुक्त में-

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नीरज कुमार नीर

हास्य व्यंग्य में-

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सरोजिनी प्रीतम

पुनर्पाठ में-

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चंदन सेन

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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