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  २३. ४. २०१२

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1गाँव

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पहले जैसा
प्रेम- गंध से भरा
अभी भी गाँव।

रिश्ते नातों में
अब तक बाकी है
अपनापन
बरस रहे
हर ड्योढ़ी - आँगन
सुख - सावन

भरी धूप में
सुखमय लगती
पीपल छाँव।

सुख दुःख मे
सम्मिलित होकर
जीते जीवन
मानवता ही
सबसे बढ़कर
जीवन - धन

बिछा न पायी
मलिन कुटिलता
अपने दाँव।

-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

इस सप्ताह

नवगीत की पाठशाला से-

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला

अंजुमन में-

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन

छंदमुक्त में-

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अशोक भाटिया

दोहों में-

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योगेन्द्र शर्मा अरुण

पुनर्पाठ में-

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ब्रजेश कुमार शुक्ल

पिछले सप्ताह
१६ अप्रैल २०१२ के अंक में

नवगीत-की पाठशाला से-

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चुने हुए गीत

दिशांतर में-

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अनिल प्रभा कुमार

कुंडलिया में-

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ओम प्रकाश तिवारी

अंजुमन में-

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श्यामल सुमन

पुनर्पाठ में-

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संजीव गौतम

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
 
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