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  २७. ६. २०११

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हम भी दुखी तुम भी दुखी
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  रातरानी रात में
दिन में खिले सूरजमुखी
किन्‍तु फिर भी आज कल
हम भी दुखी
तुम भी दुखी!

हम लिए बरसात
निकले इन्‍द्रधनु की खोज में
और तुम
मधुमास में भी हो गहन संकोच में।
और चारों ओर
उड़ती है समय की बेरूखी!

हम भी दुखी
तुम भी दुखी!

सिर्फ आँखों से छुआ
बूढ़ी नदी रोने लगी
शर्म से जलती सदी
अपना 'वरन' खोने लगी।
ऊब कर खुद मर गए
जो थे कमल सबसे सुखी।

हम भी दुखी
तुम भी दुखी!

- ओम प्रभाकर

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

हाइकु में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
२० जून २०११, पलाश विशेषांक में

गीतों में- अतुलचंद्र अवस्थी, कुमार रवीन्द्र, जीवन शुक्ल, नचिकेता, निर्मला जोशी, पं. गिरि मोहन गुरु, धर्मेन्द्र कुमार सिंह, नवीन चतुर्वेदी, नियति वर्मा, परमेश्वर फुँकवाल, प्रभु दयाल, ब्रजनाथ श्रीवास्तव, यतीन्द्रनाथ राही, यश मालवीय, यशोधरा यादव यशो, रचना श्रीवास्तव, रामकृष्ण द्विवेदी, राममूर्ति सिंह अधीर, विनोद निगम, श्याम बिहारी सक्सेना, शेषधर तिवारी, संजीव सलिल, हरीश प्रकाश गुप्त, क्षेत्रपाल शर्मा। छंदमुक्त में- राज वत्स्य, श्रीकांत कांत, शिल्पा अग्रवाल, शीबा राकेश, स्वाती भालोटिया। दोहों में- जयजयराम आनंद, संतोष कुमार सिंह, संकलित दोहे इसके अतिरिक्त- हाइकु और क्षणिकाएँ

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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