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४. १०. २०१०

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गुनगुनी होने लगी है

 

गुनगुनी
होने लगी है
दपदपाती धूप अब तो
क्वाँर की दहलीज पर
धर पाँव!

नवविवाहित
युगल  -  जैसी
मुदित है हर भोर अब तो
हो रहा मधुमास
पूरा गाँव!

है बुलाती
पास  अपने
सरसती वातासि अब तो
धानवाले खेत नंगे पाँव!

सोच
परदेसी पिया का
गाल पर धर हाथ अब तो
करे सजनी बैठ
पीपल छाँव!

झूठ-से
लगते उसे हैं
सगुन के सब काज अब तो
झूठ-सी ही भोर की
अब काँव!

-रावेंद्रकुमार रवि

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

लंबी कविता में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
२७ सितंबर २०१० के अंक में

गीतों में-
राणा प्रताप सिंह

अंजुमन में-
डॉ.
राजेन्द्र गौतम

छंदमुक्त में-
अरविंद कुमार सिंह

हाइकु में-
रचना श्रीवास्तव

गाँधी जयंती के अवसर पर संकलन-
तुम्हें नमन

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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