गुनगुनी
होने लगी है
दपदपाती धूप अब तो
क्वाँर की दहलीज पर
धर पाँव!
नवविवाहित
युगल - जैसी
मुदित है हर भोर अब तो
हो रहा मधुमास
पूरा गाँव!
है बुलाती
पास अपने
सरसती वातासि अब तो
धानवाले खेत नंगे पाँव!
सोच
परदेसी पिया का
गाल पर धर हाथ अब तो
करे सजनी बैठ
पीपल छाँव!
झूठ-से
लगते उसे हैं
सगुन के सब काज अब तो
झूठ-सी ही भोर की
अब काँव! -रावेंद्रकुमार रवि |