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अभिव्यक्ति  

१३. ९. २०१०

अंजुमन उपहार काव्य संगमगीत गौरव ग्रामगौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलनहाइकु
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चितराम यादों के

 

फिर हुए अंकित हृदय की भित्ति पर
वे सभी चितराम यादों के!

खो गए सब रूप
धूमिल रंग
चढ़ गई जब धूप
बदले ढँग

फिर हुए जैसे समाहित ढेर में
रागमय सुख-धाम यादों के!

तुम नहीं समझे
कि झुकती शाख
आँख है तो आयु
भर की साख

हो रही ज्‍यों गंध संचित, हवा में
उभर आए नाम यादों के!

कर्म के सब खेल
सोचे कौन
हर हवेली-हार
कब से मौन

लौट आएँगे कभी वे वक्‍त से
सब प्रवासी राम यादों के।

-तारादत्त निर्विरोध

इस सप्ताह

गीतों में-

दिशांतर में-

छंदमुक्त में-

मुक्तक में-

संकलन में हिंदी दिवस के अवसर पर-

पिछले सप्ताह
६ सितंबर २०१० के अंक में

गीतों में-
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

अंजुमन में-
प्राण शर्मा

छंदमुक्त में-
नंदलाल भारती

हाइकु में-
अरुण कुमार प्रसाद

पुनर्पाठ में-
डॉ. संतोष कुमार पांडे

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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