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आँखों के हैं आँसू गीत,
मूक-मूक जो गाते अपने सारे राग प्रणीत।नीर
नहीं वे, जिसमें होती कोई मीठी पीर नहीं,
जिसके अंतस्तल में लगता कोई घातक तीर नहीं,
बुझ जाती है आग स्वयं ही जो जाती कुछ ज्वाल लिए,
जिसके भीतर जौहर होते हो पाती गंभीर नहीं,
आँसू आँखों के ऊपर भी करते अपनी जीत।
नीर नहीं वे जिसके होता तन के भीतर ह्रदय नहीं,
लहरें उठतीं पोली-पोली सुख-दुःख का ले उदय नहीं,
भाव न उठते अंतरतम में डूबे भव की नाव भले,
सर में हो, सरिता में हो, शुचि सागर में हो सदय नहीं,
आँसू मानस पर भी करते अभिनय एक पुनीत।
आँसू अपनी लड़ियों में बह रचते ऐसे हार नए,
जिनको कभी विहाग पहिनते मादक कभी मल्हार नए,
किसी राक से उठते जलधऱ किसी राग से दीप जलें,
चलती नई बयार धरा पर उठें जाग संसार नए,
गाँवे आशावरी भैरवी आँसू आशातीत।
आँसू रजनी के तारों से गाते अपने तार मिला,
तानें करें परस्पर चुंबन परिरंभन में प्यार मिला,
अंतःपुर में मूक वेदना ऊपर नीचे नृत्य करे,
ऊपर पहुँचे जो जीवन का मानव को उपहार मिला,
आँखें ही सुनतीं आँखों का यह नीरव संगीत।
मूक आँसुओं की स्वर-लहरी स्वर गंगा को लोल करे,
स्वर-गंगा से खींच नीर को जग के तरल कपोल करे,
पोंछें हँसी जिन्हें अंबर से सींचें सकरुण मेघ कभी,
एक-एक आँसू का चेतन स्वगंगा ही मोल करे,
आँसू-आँसू में है जीवन जीवन का वह मीत।
--अम्बिका प्रसाद
दिव्य |