राजेश चेतन
के दोहे
अंग्रेज़ी पतझड़ गया, हिंदी
सावन आज
अब तो अपने देश में, हो हिंदी का राज
सोने की चिड़िया रहा, अपना
भारत देश
सोना दुश्मन ले गया, चिड़िया रह गई शेष
कर्म भाग्य दोनों बड़े,
इससे बढ़कर कौन
कर्म लगन से कीजिए, भाग्य रहे ना मौन
मच्छर अपने गाँव में, खटमल
अपनी खाट
कंगाली है जेब में, फिर भी अपने ठाट
दातूनें दीखती
नहीं,
मंजन है लाचार
टूथपेस्ट बिकने लगा, गली-गली बाज़ार
आयुर्वेद को छोड़कर,
अंग्रेज़ी उपचार
आयु छोटी हो गई, खर्चा कई हज़ार
लाठी जिसके हाथ है, भैंस
उसी के संग
बासमती पर चढ़ गया, अमरीका का रंग
महालक्ष्मी जी दीजिए,
निर्धन को वरदान
रोटी हो सम्मान की, सिर पर एक मकान
--राजेश चेतन |