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 सफल मनोरथ 
बढ़ता चल सफलताओं के उच्च 
शिखर  
लक्ष्य साध बढ़ता चल 
विभोर एक भाव लेकर सोते-जागते चलते-फिरते  
शरीर का सर्वांग मस्तिष्क स्नायु उसी विचार में विचरते  
धीर वीर गंभीर वीरवर चलता-चल बढ़ता 
चल। 
धुआँ धूल धुंध 
युक्त 
कंट कील कण युक्त रास्ते अगम्य है 
चट्टान चोट चोटियाँ सफल-सिद्धि 
 
साधना-संपन्न वास्ते मर्मज्ञ है 
उठते-गिरते टूटते-बिखरते रक्तलिप्त 
सर्वांग  
निखरेगा बलाबल 
बढ़ता चल स्थितप्रज्ञ बलवान वीरभट  
बढ़ता 
चल बढ़ता चल। 
बार-बार असफलता सफलता का 
भान है 
दुर्बलता मरण 
आत्मबल आत्मविश्वास मानव जहान है 
कह ''नहीं'' कभी असंभव कुछ नहीं 
पर-सहारा अस्ताचल 
हे अध्यवसायी बढ़ता चल 
वीर्यवान भगीरथ वंशज  
बढ़ता चल बढ़ता 
चल। 
बढ़ना है तो इतिहास देख 
पूर्वज-लीला महान देख 
राणा का आत्मविश्वास देख-देख  
वृद्ध 
कुँवर का वक्ष-विशाल रानी झाँसी की 
आन देख 
आग देख पहाड़ 
देख हवा का रूप विकराल देख  
बिखेर आभा उदयाचल 
बढ़ता चल हे महावीरों की संतान वीरपुत्र चले मार्ग पर चलता-चल बढ़ता 
चल। 
भाग्यवादी असफल स्वकर्म दूसरों पर मढ़ता 
है 
निश्चिंत वह उत्तरदायी 
ईश्वर को बतलाकर होता है 
आलसी अकर्मण्य मनुज पीते सदा निंदा 
का हलाहल 
हे इंद्रजित! छोड़ 
दो आलस्य बढ़ता चल बढ़ता चल। 
लक्ष्य में रत कई कर्तव्य 
तुम बाधा विघ्नों को चूम तुम 
मार्ग कठिन छुरे के धार समान निराश न हो रहो चलायमान 
सफलता कदम चूमेगी राष्ट्र तुम पर झूमेगा लगा केवल संपूर्ण 
शक्तिबल 
बढता चल लक्ष्यसाधक अर्जुन तेजस्वी श्रद्धा 
संपन्न बढ़ता चल बढ़ता 
चल 
9 अप्रैल
2007 
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