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एक भिखारी 
भीख माँगता नज़र 
आया स्टेशन पर एक भिखारी 
हट्टा-कट्टा नौजवान था बहुगुणी वह 
व्यापारी 
धन हेतु रूप बदलता 
करता अग्रणी तैयारी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
कभी कपटी कोढ़ दर्शाता
कभी बनता अपंग भारी 
दाह हेतु पैसा दे दो मरी है मेरी नारी 
है वह सकुशल सुंदर मगर पैसों की है 
बीमारी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
है वह चोरों का जासूस कुशल देख लोगों 
के धन सारी 
लुटवाता जेब कटवाता है अव्वल दर्जे 
का जुआरी 
है उसकी पुश्तैनी पेशा देता पुत्र को तरक़ीबी जानकारी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
हुई शाम पैसा इकट्ठा चाहिए 
अब मधु अथवा ताड़ी 
देना है टैक्स उसे भी जो है पुलिस का अधिकारी  
शेष भिक्षा मनोरंजन के लिए चाहे हो चलचित्र अथवा परनारी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
भूख के लिए 'नहीं' भिक्षा 
नहीं कभी ज़मीर धिक्कारी 
भीख माँग रंगरेलियाँ मनाना 
कभी नही जीवनोद्देश्य पुकारी 
मृत्यु है इससे भली नहीं कभी इज़्ज़त 
ललकारी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
खो रहे है भिखारी की भीड़ 
में सब के सब नर नारी 
देकर उनको भीख बढ़ाते है विकट महामारी 
आदिकाल में भीख देने की परंपरा थी  
वह भी नियम की आभारी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
कैसा समाज है, पैदा होते 
रोज़ सैकड़ों भिखारी 
देते भिक्षा है वही है उनके जो भ्राता कर्मचारी 
एक भाई है भीख माँगता दूसरा करता रिश्वतखोरी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
न दो भिक्षा उसको जो हो 
हृष्ट-पुष्ट पूर्णांग भिखारी 
अन्यथा बिन किए समाज होगा अकर्मण्य भारी 
शपथ न देने की भीख सुधारेगी समाज के अवगुण सारी 
भीख माँगता नज़र आया स्टेशन पर एक 
भिखारी। 
9 अप्रैल
2007 
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