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                  सुनील जोगी के चार नए प्रेमगीत 
                  
                  तुम बिन 
                  न तुम भूल पाए न 
                  हम भूल पाए 
                  
                  प्यार के गीत  
                  हम चले तो यूँ लगा  
                   
                   
                  
                   
                   
                   
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 तुम बिन 
 
सागर सी फैली रातें और ये पहाड़ जैसे दिन 
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन । 
 
सदियों पहले कुछ सपने 
दर्पण जैसे टूटे थे 
ज्यों डाली से पत्ता टूटे 
तुमसे ऐसे छूटे थे 
पलकें तक नहीं झुकाईं  
इस कदर डरे बैठे हैं 
उस दिन से ही आंखों में 
हम रेत भरे बैठे हैं  
हर रात मुझे डसती है बन कर के काली नागिन । 
तुम ही मुझको बतलाओ कैसे काटें हम तुम बिन ।। 
 
निर्धन से कोमल मन पर 
यादों की चढ़ी उधारी 
जैसे इक जर्जर तन को 
सांसें लगती हैं भारी 
रिश्तों का बोझा लादे 
हम नगर-नगर भटके हैं 
हम बिना पाप ईसा से 
क्यूँ सूली पर लटके हैं 
हर पल लगता है जैसे
घावों में धंसी हुई पिन । 
तुम ही मुझको बतलाओ
कैसे काटें हम तुम बिन ।। 
 
है बहुत शोरगुल भीतर 
बाहर सब सन्नाटा है 
स्मृतियों के गालों पर 
पीड़ाओं का चाटा है 
सिन्दूर रहा हाथों में 
हम मांग नहीं भर पाये 
जैसे हो पूरनमासी  
और चांद न छत पर आये 
थक कर सो गईं उँगलियाँ
बुझते तारों को गिन-गिन । 
तुम ही मुझको बतलाओ
कैसे काटें हम तुम बिन ।। 
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