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                  सुनील जोगी के चार नए प्रेमगीत 
                  
                  तुम बिन 
                  न तुम भूल पाए न 
                  हम भूल पाए 
                  
                  प्यार के गीत  
                  हम चले तो यूँ लगा  
                   
                   
                  
                   
                   
                   
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 न तुम भूल पाए न हम 
भूल पाए 
न तुम भूल पाए न हम भूल पाए 
 
वो चाहत का मौसम 
वो खुशबू के साए 
दिये जब मुहब्बत  
के थे जगमगाए 
वो लम्हे जो हमने
थे संग में बिताए 
न तुम भूल पाए
न हम भूल पाए ।। 
 
वो परियों के किस्से  
सितारों की बातें 
वो ज़ुल्फ़ों के साए में 
कटती थीं रातें 
वो नज़रों के पहरे 
वो बाहों के घेरे 
वो छत पे टहलना  
सवेरे-सवेरे  
वो कपड़े जो बारिश
में हमने सुखाए ।  
न तुम भूल पाए
न हम भूल पाए ।। 
 
वो हर बात पर 
रूठना फिर मनाना 
वो बागों में जाकर 
तितलियाँ उड़ाना 
वो गालों की लाली 
वो आंखों की शबनम 
वो ख़्वाबों के बादल 
हवाओं की सरगम 
हर आहट पे लगता
था जैसे तुम आए । 
न तुम भूल पाए
न हम भूल पाए ।। 
 
वो मंदिर की देहरी 
पे सर का झुकाना 
वो दरगाह जा करके 
चादर चढ़ाना 
फ़क़ीरों को पैसे  
वे चिड़ियों को दाना 
वे हर चीज तुमको 
खिलाकर के खाना 
दिये वो जो गंगा
में हमने बहाए । 
न तुम भूल पाए
न हम भूल पाए ।। 
 
जुबाँ पे था सबकी 
हमारा फसाना 
मुहब्बत का दुश्मन  
था सारा ज़माना 
न माना, न समझा  
ये दिल आशिकाना 
मगर गा न पाए 
वफा का तराना 
वो दिन जब कि
अपने हुए थे पराए । 
न तुम भूल पाए
न हम भूल पाए ।। 
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