| अनुभूति में
                  मोहन कीर्ति की रचनाएँ- हास्य व्यंग्य में-कुत्ते की वफ़ादारी
 मच्छर
 शर्मा जी की अर्ज़ी
 
   |  | शर्मा जी की 
                  अर्ज़ी अदालत में 
                  आज हो रही थी सुनवाई
 एक बीबी ने शौहर की
 की थी पिटाई
 तंग आकर शर्मा ने अर्ज़ी दे डाली
 कि रोज़ पीटती है मुझको घरवाली
 केस खुला
 हुई बहस शुरू
 जज ने पूछा क्या आफ़त पड़ा गुरु?
 क्यों नारी को कठघड़े में
 खड़े कर रहे हो
 छोटी-छोटी बातों को
 तूल दे रहे हो
 शर्मा ने एक नज़र भीड़ पर डाला
 थोड़ा शरमाया थोड़ा सकुचाया
 कहा हुजूर -
 शादी से पहले इन्हें
 मैं सताता था
 शादी के बाद अब वो सताती है
 इतना ही रहता तो
 बात कुछ और थी
 अब तो बात बात में
 सिर पर झाडू चलाती है
 इससे तो हुजूर मौत है अच्छा
 क्योंकि मैं भी तो नहीं हूँ कच्चा
 बस हुजूर
 आप से फरियाद करता हूँ
 इस औरत से तलाक़ चाहता हूँ।
 जज ने हौले से
 चश्मा उठाया
 नाक भौंह सिकोड़ा
 और फ़रमाया
 बरखुरदार -
 आप इतने में ही घबड़ा गए
 कैसे बीच में लड़खड़ा गए।
 ज़रा पास आइए
 एक राज़ का बात बताता हूँ
 आपके हित में ही फैसला सुनाता हूँ
 शर्मा जी आए
 जज मुसकाए
 और बोल -
 सुनो बात मेरी
 मेरी तो होती है भांडों से पीटाई
 फर्क सिर्फ इतना है
 तुम्हें झाडू के पैसे नहीं लगते
 मुझे फूटे भांडों के दाम देने 
                  पड़ते
 फिर भी मैं हूँ कितना खुश
 अरे ज़िन्दगी का यही तो है दस्तूर
 शर्मा को अब बात समझ में आई
 सोचा तब तो अच्छी है मेरी हरजाई
 बस जज को प्रणाम किया
 बीबी से आँखे चार किया
 और मंत्र गुनगुनाया
 'पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृतानुसारणीम्
 तारणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम।'
 ७ अप्रैल २००८ |