अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शशि पुरवार की रचनाएँ -

नये गीतों में-
कमसिन साँसें
तिलिस्मी दुनिया
थका थका सा
दफ्तरों से पल
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
याद की खुशबू
समय छिछोरा

गीतों में-
अब्बा बदले नहीं
कण-कण में बसी है माँ
मनमीत आया है
महक उठी अँगनाई
व्यापार काला

 

 

अब्बा बदले नहीं

अब्बा बदले नहीं
न बदली है उनकी चौपाल

अब्बा की आवाज गूँजती
घर आँगन थर्राते हैं।
मारे भय के चुनियाँ मुनियाँ
दाँतों, अँगुली चबाते हैं।

ऐनक लगा कर आँखों पर
पढ़ लेते हैं मन का हाल

पूँजी नियम- कायदों की हाँ
नित प्रातः ही मिल जाती है
टूट गया यदि नियम, क्रोध से
दीवारे हिल जाती हैं।

अम्मा ने आँसू पोंछे गर
मचता तुरत बबाल।
पूरे वक़्त रसोईघर में
अम्मा खटती रहती है।
अब्बा के संभाषण अपने
कानों सुनती रहती है।

हँसना भूल गयी है
खुद से करती यही सवाल।

१० मार्च २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter