| अनुभूति में
                  कैलाश गौतम की रचनाएँ-
 
                   दोहों में-वसंती दोहे
 गीतों में-आई नदी
 गाँव गया था गाँव से भागा
 बरसो मेघ
 बारिश में घर लौटा कोई
 रस्ते में बादल
 यही सोच कर
 संकलन में-वर्षा मंगल - हिरना आँखें
 |  | यही सोच कर 
                  यही सोचकर आज नहीं निकला -गलियारे में
 मिलते ही पूछेंगे बादल
 तेरे बारे में।
 लहराते थे झील-ताल, पर्वतहरियाते थे
 हम हँसते थे झरना झरना हम
 बतियाते थे
 इन्द्रधनुष उतरा करता था
 एक इशारे में।
 छूती थी पुरवाई खिड़की, बिजलीछूती थी
 झूला छूता था, झूले की कजली -
 छूती थी
 टीस गई बरसात भरी
 पिछले पखवारे में।
 जंगल में मौसम सोने का हिरनालगता था
 कितना अच्छा चाँद का नागा करना-
 लगता था
 मन चकोर का बसता है
 अब भी अंगारे में।।
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