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अनुभूति में डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
उत्तम पुरुष
पता नहीं
मैं समर्पित बीज सा
स्तब्ध हैं कोयल

गीतों में-
ऋतुराज इक पल का
केवल यहाँ सरकार है
गंगोजमन
ज़िन्दगी
देख गोबरधन
निकला कितना दूर
पीटर्सबर्ग में पतझर
राजा के पोखर में
 

संकलन में-
गाँव में अलाव- जाड़े में पहाड़

  ऋतुराज इक पल का

राजमिस्त्री से हुई क्या चूक, गारे में
बीज को संबल मिला
रजकण तथा जल का।
तोड़कर पहरे कड़े पाबंदियों के आज
उग गया है एक नन्हा गाछ
पीपल का।

चाय की दो
पत्तियोंवाली फुनगियों ने पुकारा
शैल-उर से फूटकर उमड़ी
दमित-सी स्नेह-धारा
एक छोटी-सी
जुही की कली मेरे हाथ आई
और पूरी देह
आदम खुशबुओं से महमहाई

वनपलाशी आग के झरने नहाकर हम
इस तरह भीगे कि खुद जी
हो गया हलका।

मूक थे दोनों,
मुखर थी देह की भाषा
कर गया जादू
ज़ुबां पर गोगिया पाशा
लाख आँखें हों मुँदी,
सपने खुले बाँटे
वह समर्पण फूल का ऐसा,
झुके काँटे

क्या हुआ जो धूप में तपता रहा सदियों
ग्रीष्म पर भारी पड़ा ऋतुराज
इक पल का।

9 दिसंबर 2007

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