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अनुभूति में डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
उत्तम पुरुष
पता नहीं
मैं समर्पित बीज सा
स्तब्ध हैं कोयल

गीतों में-
ऋतुराज इक पल का
केवल यहाँ सरकार है
गंगोजमन
ज़िन्दगी
देख गोबरधन
निकला कितना दूर
पीटर्सबर्ग में पतझर
राजा के पोखर में
 

संकलन में-
गाँव में अलाव- जाड़े में पहाड़

  गंगोजमन

और सब तो ठीक है
बस एक ही है डर
आँधियाँ पलने लगीं
दीपावली के घर।

हर तरफ़ फहरा रही
तम की उलटबाँसी
पास काबा आ रहा
धुँधला रही कासी।

मंत्रणा समभाव की
देते मुझे वे लोग
दीखता जिनको नहीं
अल्लाह में ईश्वर।

नाव जर्जर खे रही
टूटी हुई पतवार
अंग अपने ही कटे
शिवि की तरह हर बार।

हम चुकाते रह गए
गंगोजमन का मोल
रंग जमुना का चढ़ाया
शुभ्र गंगा पर।

बँट रही मुँह देखकर
रोली कहीं गोली
मार गुड की सह रही
गणतंत्र की झोली।

बाँटते अंधे यहाँ
इतिहास की रेवडी
और गूँगे हम, बदलते
फूल से पत्थर।

9 दिसंबर 2007

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