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अनुभूति में बृजनाथ श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
पहले जैसा
प्रेमचंद जी
ये शहर तो

सुनो राजन

गीतों में-
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
बुलबुल के घर
सगुनपंछी
होंठ होंठ मुस्काएँगे

 

प्रेमचन्द जी

साँझ सकारे मिल जाते जब
प्रेमचन्द जी गली दुआरे

कहते फिरते बदल गये दिन
किंतु न बदला अभी आदमी
गाँवों से लेकर राजभवन तक
गोटे अब भी वही जमी

घीसू बुधिया द्वारे-द्वारे
मारे फिरते हाथ पसारे

कहते दाता दीन अभी भी
चलता वही घिनौनी चाले
भगत बाँचता मंतर अब भी
चड्ढा के हैं खेल निराले

रात पूस की खाँस-खाँस कर
हलकू निबट गया भिनसारे

खेतो का तन काट-काट कर
बसी बस्तियाँ हैं नभचुम्बी
पिछले दिन तो प्यार भरे थे
अब के दिन हैं कपटी दम्भी

नही गॉव मे लोकतंत्र अब
उसका घर है पाँच सितारे

२२ दिसंबर २०१४

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