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अनुभूति में आचार्य भगवत दुबे की रचनाएँ-

गीतों में-
आप बड़े हैं
ऋचाएँ प्रणय-पुराणों की
झोंपड़ी के कत्ल का संशय हुआ है
नींद जाने कब खुलेगी
साँड़ तगादों के

 

नींद जाने कब खुलेगी

बोतलें बिकने लगी हैं
आज पानी की,
गन्ध गायब हो न जाए
रातरानी की!

कैद कूलर में हुई शीतल पवन,
घट गया अमराइयों में
स्वार्थ अपना ही अगन
अस्मिता खतरे में,
छप्पर-छाँव-छानी की!

आंचलिकता है अछूतों की तरह,
रौब है अँग्रेजियत का
रातपूतों की तरह
आ रसोई तक गई
चप्पल लखानी की!

खेत सूखे और प्यासे हैं कुएँ,
बाँझ लतिका, तरू नपुंसक
मेघ सन्यासी हुए
नींद जाने कब खुलेगी ?
राजधानी की!

३ दिसंबर २०१२

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