|  आज शाम है बहुत उदास आज शाम है बहुत उदासकेवल मैं हूँ अपने पास।
 दूर कहीं पर हास-विलासदूर कहीं उत्सव-उल्लास
 दूर छिटक कर कहीं खो गया
 मेरा चिर-संचित विश्वास।
 कुछ भूला-सा और भ्रमा-साकेवल मैं हूँ अपने पास
 एक धुंध में कुछ सहमी-सी
 आज शाम है बहुत उदास।
 एकाकीपन का एकांतकितना निष्प्रभ, कितना क्लांत।
 थकी-थकी सी मेरी साँसेंपवन घुटन से भरा अशान्त,
 ऐसा लगता अवरोधों से
 यह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त।
 अंधकार में खोया-खोयाएकाकीपन का एकांत
 मेरे आगे जो कुछ भी वह
 कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत।
 उतर रहा तम का अम्बारमेरे मन में व्यथा अपार।
 आदि-अन्त की सीमाओं मेंकाल अवधि का यह विस्तार
 क्या कारण? क्या कार्य यहाँ पर?
 एक प्रश्न मैं हूँ साकार।
 क्यों बनना? क्यों बनकर मिटना?मेरे मन में व्यथा अपार
 औ समेटता निज में सब कुछ
 उतर रहा तम का अम्बार।
 सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,आज शाम है बहुत उदास।
 जोकि आज था तोड़ रहा वहबुझी-बुझी-सी अन्तिम साँस
 और अनिश्चित कल में ही है
 मेरी आस्था, मेरी आस।
 जीवन रेंग रहा है लेकरसौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
 और डूबती हुई अमा में
 आज शाम है बहुत उदास।
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