अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राम निवास मानव की रचनाएँ-

नए हाइकु-
देखे जो छवि

कुंडलियों में-
हुई दर्दशा मंच की

हाइकु में-
जग सुरंग
नेता नरेश
बहरे पंच

मेरा जीवन

दोहों में-
कलजुगी दोहे
जीवन का नेपथ्य
महफ़िल थी इंसान की
राजनीति के दोहे
रिश्तों में है रिक्तता
सूख गई संवेदना

 

 

  रिश्तों में है रिक्तता

अरी व्यवस्था धन्य तू, रचती क्या-क्या रास।
रावण सत्ता भोगते, और राम वनवास।।

डाकूजी मुखिया बने, चोर-उचक्के पंच।
अब सामाजिक न्याय का, खूब सजा है मंच।।

कुंठित है सब चेतना, लक्ष्यहीन संधान।
टेक बने हैं देश की, अब बौने प्रतिमान।।

अभयारण्य आज बना, सारा भारत देश।
संरक्षित शैतान हैं, संकट में दरवेश।।

गाँव बने हैं छावनी, बस्ती-बस्ती जेल।
फिर भी होता है यहाँ, खुला मौत का खेल।।

आहत अपहृत रोशनी, अंधकार की क़ैद।
खड़ी घेरकर आंधियाँ, पहरे पर मुस्तैद।।

वट-पीपल के देश में, पूजित आज कनेर।
बूढ़ा बरगद मौन है, देख समय का फेर।।

बदले सभी विकास ने, जीवन के प्रतिमान।
घूँघट अब करने लगा, बिकनी का सम्मान।।

अब वह आल्हा की कहाँ, रही सुरीली तान।
कजरी, ठुमरी, फाग को, तरस गए हैं कान।।

बढ़ते-बढ़ते यों बढ़े, जीवन में सन्त्रास।
नियति आदमी की बने, सुरा और सल्फ़ास।।

रिश्तों में है रिक्तता, सांसों में सन्त्रास।
घर में भी अब भोगते, लोग यहाँ वनवास।।

२३ फरवरी २००९


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter