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अनुभूति में राम निवास मानव की रचनाएँ-

नए हाइकु-
देखे जो छवि

कुंडलियों में-
हुई दर्दशा मंच की

हाइकु में-
जग सुरंग
नेता नरेश
बहरे पंच

मेरा जीवन

दोहों में-
कलजुगी दोहे
जीवन का नेपथ्य
महफ़िल थी इंसान की
राजनीति के दोहे
रिश्तों में है रिक्तता
सूख गई संवेदना

 

 

 

देखे जो छवि (हाइकु)


देखे जो छवि
जड़ में चेतन की,
वही तो कवि।


सौन्दर्य-तीर्थ
लगे त्रिभुवन का
मुझको धरा।


नभ में इन्दु
माँ के माथे का शुभ
सुन्दर बिन्दु।


गोधूलि वेला,
लगा क्षितिज पर
रंगों का मेला।


फागुनी धूप,
ज्यों अभिसारिका का
दिपता रूप।


आया बसन्त,
बनी-ठनी-सी कली
कहाँ है कन्त?


खिली शेफ़ाली,
लगती वैशाली की
नगर-वधू।


पूछे तितली
परिभाषा प्रेम की,
फूल-फूल से।


लिया-ही-लिया
प्रकृति से हमने,
माँ जो ठहरी।

१०
दुनिया सारी
बाँधे आँखों पे पट्टी,
बनी गांधारी।

११
रावण जीता,
आज भी अपहृत
सच की सीता।

१२
कौरव-कंस
मिलते घर-घर,
दंश-ही-दंश।

८ फरवरी २०१०

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