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लजाती आवे गोरी रे

सपने हज़ार लिए
आँचल में प्यार लिए
मिलन की बाँधे डोरी रे

सरगमी रात का नया गीत है
पायलों से बजता जीवन संगीत है
प्यार की पोथी अभी तो है कोरी रे

नयनों की ओस में खिलता गुलाब है
धड़कनों में मिलता अपना जवाब है
जीवन में आया कोई चोरी चोरी रे

मधुबन की कल्पना का नया शृंगार है
साँसों से महकता अजब यह संसार है
मंद-मंद मुस्कान और माथे पे त्योरी रे

रात ही रात में घर इक बसता गया
अजनबी मन में सब कुछ रमता गया
सोलह बरस बीते रही न अब छोरी रे

९ जून २००६

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