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अनुभूति में रेखा मैंत्रा की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
स्वयंवर
इबारत प्यार की
पतंग
मोहब्बत के सिक्के
रूह की आज़ादी

 

पतंग

पतंग हूँ तुम्हारी मैं
पहले तो शानदार
चटख रंग से
तुमने सजाया मुझे
हवा में तुम्हारे
धागे के सहारे
ऊपर ,बहुत ऊपर
जब उड़ने लगी
अपने सौंदर्य पर
मन में इतराने लगी
तभी अचानक एक
अदृश्य डोर आई
और मैं ज़मीन पर आ गिरी
तब ख़याल आया
अरे डोर तो मेरी
तुम्हारे ही हाथ में थी।

२३ अगस्त २०१०

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