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अनुभूति में राहुल उपाध्याय की रचनाएँ —

छंद मुक्त में-
मरते दम तक
मौसम
मिलन
कहर
पहला प्यार
किनारे किनारे

 

मरते दम तक

अभी भी कुछ हरियाली बाकी है
कब्र के हुजूम में
ताकि अपने प्रियजन दफ़नाए जा सके
दो पल बैठ कर आँसू बहाए जा सके

अभी भी कुछ हरियाली बाकी है
अट्टालिकाओं के झुंड में
ताकि बच्चे तितलियों के पीछे भाग सके
नन्हे हाथ उड़ते गुब्बारों को पकड़ सके

अभी भी कुछ हरियाली बाकी है
काली सड़कों के जाल में
ताकि थका हुआ मज़दूर थोड़ी देर सुस्ता सके
ठंड से जूझता बुज़ुर्ग थोड़ी देर धूप सेंक सके

सीमेंट के अथाह समंदर में
अभी भी कुछ पेड़ बाकी है
न कोई उन्हें सम्हालता है
न कोई उन्हें पानी देता है
सूरज भी इर्द-गिर्द की मीनारों पर
धूप डाल कर मुँह फेर लेता है

फिर भी पेड़ बाज नही आते हैं
अपनी शाख को 'ट्रैफ़िक' में घुसाने से
वसंत में फूलों से लद जाने से
पतझड़ में 'स्वीपर' को छकाने से

बूढ़े हो चले हैं
मगर
अभी भी कुछ जान बाकी है

१६ फरवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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