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मेरा अनुभव

रियाद के
छोटे से घर में प्रवेश पाया
बन्द खिड़कियों पर
मोटे पर्दों को पाया
प्यारे घर को
हर सुविधा से सम्पन्न पाया
फिर भी
अनोखे अभावों की थी कोई छाया
धूप का नन्हा सा टुकड़ा न अन्दर आ सकता
मन तरसता न कोई छोर पा सकता
कभी झोंका हवा का
बन्द खिड़की से आता
दनदनाता हुआ धूल भी साथ लाता
भूले भटके कभी जो रवि आ पहुँचता
नन्हें मेरे से वह अठखेली भी करता
प्रकृति और नन्हे मेरे का यह रूप प्यारा
भाता सभी को मन मोह लेता हमारा
लेकिन
रेगिस्तान की इस दुनिया में
काले बुरके से दिखती
सिर्फ़ काली कजरारी आँखें
जिन्हें देख कई कविताओं ने जन्म लिया


१६ मार्च २००१

 

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