अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में लावण्या शाह की
की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
कल
तुलसी के बिरवे के पास
प्राकृत मनुज हूँ
बीती रात का सपना

गीतों में-
जपाकुसुम का फूल
पल पल जीवन बीता जाए

संकलन में-
वसंती हवा–कोकिला
प्रेम गीत–प्रेम मूर्ति
वर्षा मंगल – अषाढ़ की रात
गांव में अलाव–जाड़े की दोपहर में
गुच्छे भर अमलतास–ग्रीष्म की एक रात
ज्योतिपर्व–दीप ज्योति नमोस्तुते
दिये जलाओ–प्रीत दीप
ज्योति पर्व
मौसम– खिड़की खोले, विजय प्रकृति श्री की
ममतामयी–अम्मा

 

कल

कल कल कल...करता,
बीत गया कल !
अब कल है, आनेवाला !
जीवन के निर्झर से झर, झर
झरना, रीत गया !
झर, झरना, रीत गया !
कल सा ही बीत गया !
सागर के स्वर से मर्र मर्र कर,
जब सपना टूट गया
-कोई अपना छूट गया !
कल सा ही बीत गया !
रवि के कण से,
निसृत, छन कर,
जब अंबर टूट गया !
घन अंबर रुठ गया !
री, कल सा टूट गया!
सरिता के जल से विकल, निकल,
कल कल स्वर रीस गया !
स्वर आगे निकल गया
कल सा ही बिखर गया !

१६ सितंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter