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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

आषाढ़ की रात

 

 

मध्य रात्रि ही लगेगी,
आज पूरी रात भर में!

आह!
ये, आषाढ़ की बरसाती रात है!
ऊपर गगन से जल,
नीचे धरा पर टूटता-
जोड़ देता, पृथ्वी और आकाश को,
जो अचानक!
तड़ित, विस्मित देह, कंपित,
ओझलाझल है, नज़र से!

बस, चमकीला नीर,
गिरता जो व्यथित
अंधड़ हवा से उछलता, या हल्की,
टप. . .टप. . .!
पर है धुप्प अँधेरा जहाँ में,
हर तरफ़!
काली अमावसी रात,
मानो करेला, नीम चढ़ा!
मैं, असहाय, सहमी,
है जी, उचाट मेरा!
देख रही पानी को,
काली भयानक रात को,
तोड़ कर, काट,
फेंक देती जो विश्व को,
मुझसे, बिल्कुल अलग-थलग,
अलहदा. . .और,
मैं, रौंद देती हूँ,
मेरी उँगलियों के बीच में,
वेनी के फूल!

मेरी व्याकुल मन चाहे
आएँ स्वजन, इस आषाढ़ी रात में
मन पुकारता है, उन बहारों को,
लौट गईं जो उलटे पाँव!
आगत आया ही नहीं, इस बार!
पानी नहीं, मुझे आग चाहिए!

- लावण्या शाह

22 अगस्त 2001

 

सावन में

सावन में तन मन जलाए
हाय रे बेदर्दी साजन!
तेरे बिन जिया न जाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

धरती प्यासी आँगन प्यासा
रीत गई हर अभिलाषा
दर्द बढ़ा कर क्या सुख पाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

बदरा बरसे कण-कण हरसे
हरी-हरी हरियाली सरसे
तू क्यों मेरी जलन बढ़ाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

सुन ले मेरी कातर मनुहारें
कभी तो आ भूले-भटकारे
अब तो हाय अंग लगा ले
हाय रे बेदर्दी साजन!

प्रीत की रीत वही पुरानी
तू क्या जाने ओ अभिमानी
राधा को क्या कपट दिखाए
हाय रे बेदर्दी साजन!

- प्रिया सैनी

 

28 अगस्त .2005

 

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