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अनुभूति में जैनन प्रसाद की रचनाएँ— 

छंदमुक्त में—
एक नारी
कैसे भुलाऊँ तुम्हें
खड़ाऊँ
गुरु दक्षिणा
चीर हरण
मछली
मेरा मन
रावण या राम

हास्य व्यंग्य में—
उठो जी
एक नेता
झूठ
बैठ जाओ

 

कैसे भुलाऊँ तुम्हें

अकस्मात!
तुम्हारी याद में।
टपक गई
दो बूँद अश्रु की
सागर में।
तुम कहती हो
भुला दें तुम्हे!
असंभव है।
हाँ!
संभव हो भी सकता है
अगर कोई
इतना करे।
ढूँढ लाए
बस वो
दो बूँद मेरे।

१ फरवरी २००६

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