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कौन कहता है
ग़म गुसारों की बात
दरमियाँ यों न फ़ासिले होते
नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
मेरे हाथों की लकीरों में

वो एक चाँद-सा चेहरा

अंजुमन में-
अपनी नज़र से
किस तरह
जो भी मिलता है
प्यार के काबिल नहीं
मेरे वजूद में
रंगों की बौछार

 

प्यार के क़ाबिल नहीं

किसी के प्यार के क़ाबिल नहीं है
मुहब्बत के लिए ये दिल नहीं है

बड़ा ही ग़मज़दा बे आसरा है
जे कुछ भी हो मगर बुज़दिल नहीं है

मुहब्बत में बला की चोट खाई
बहुत तड़पा है पर घायल नहीं है

ये परछाई किसी हरजाई की है
मेरा साया तो ये बिल्कुल नहीं है

मेरी आँखों से गुमसुम रोशनी है
मेरी नज़रों से वो ओझल नहीं है

मुझे जो जान से है बढ़ के प्यारा
क्यों मेरे दर्द में शामिल नहीं है

मुहब्बत चाँद से वो क्या करेगी
चकोरी जैसी जो पागल नहीं है

16 अक्तूबर 2007

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