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अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-

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नदी के प्रवाह मे
पत्थर
पागल भिखारी
भाग अमीना भाग
माँ 
रबर की चप्पल
रेलवे स्टेशन पर
रामला

लंबी सड़क

तुम्हारे घर से मेरे दफ्तर तक की
लंबी सड़क पर,
कौल तार और आसमान के बीच
मैं बिल्कुल अकेला हूँ,

फिर भी,
हम सारे रास्ते बातें करते जाते हैं,
एक दूसरे की बात काटते हुए,
उत्तेजित।

सपना टूटता है
फैक्ट्री के फाटक पर।

३० जून २००८

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